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अनुभूति में भोलानाथ की रचनाएँ-

गीतों में-
उड़ रही है गंध
उन्माद
भैया जी
भेड़ियों के पहरों में
समय कहाँ मुझको

 

उड़ रही है गंध

उड़ रही है गंध
या चू रही है चाँदनी
या किया सिंगार तुमने आज फूलों से !
झूल कर आई अभी तुम क्या कदम की डालियाँ
या गंधशाली नन्द झूलों से !

घर की तुलसी
और आँगन के शिवालय में
आलोकित हो रही है आज पिंडी
रंग फूलों से भरी पूरी जलहरी
आकाश तक लहरा रही
शिव पर्व की झंडी
जलती हुई समिधा में
छूटी जा रहीं आहुतियाँ
छू रही है तर्जनी आग भूलों से !

घर के आगे
छत के ऊपर मादिनी के रंग में
कंठ तक भींगा है आँचल,
ओठ में टेसू की लाली
और आँखों में पलाशी हो रहा है
आज काजल,
बस रही है कंठ कोयल
छेड़ कर रागिनी या लौटी
बसंत है छंद लिखे कूलों से !

साँसों की
बगिया में जन्मों से गंध बसी
भीतर जो नाम की तुम्हारे,
अंग अंग महक रहीं
पुष्पित पंखुरियाँ, ओस धुली रात है
चाँद क्या विचारे,
चौकड़ियाँ भर भर
हिरनी के शावक देह भर हिराने
वाकिव हैं आदिम उसूलों से !

१५ अप्रैल २०१३

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