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अनुभूति में बृजनाथ श्रीवास्तव की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कवि नहीं हो सकते
नौकरीशुदा औरतें
मार्गदर्शक
मेरे लिए कलम
रोटी

गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
पहले जैसा
प्रेमचंद जी
बुलबुल के घर
ये शहर तो
सगुनपंछी
सुनो राजन
होंठ होंठ मुस्काएँगे

 

कवि नहीं हो सकते

तुम
कवि नहीं हो सकते
और न ही
कविता लिख सकते हो
क्योंकि
तुम बोते हो अँधेरे के बीज
तुम फैलाते हो
असमानताएँ, नफरत
कर्मवादी के बजाय
तुम बनाते हो
अवाम को भाग्यवादी
और तुम उसे
स्वर्ग-नरक के कीचड़ में
समूचा का समूचा
ऐसा धाँस देते हो
कि वह गहरे
और गहरे धँसता चला जाता है
पीढ़ी दर पीढ़ी
तुम
कवि नहीं हो सकते

१ नवंबर २०२२

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