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अनुभूति में देवेंद्र आर्य की रचनाएँ-

नए गीत-
ज़िंदगी की गंध
रहूँगा भोर तक
बहुत अँधेरा है
शब्द की तलवार

गीतों में-
आशय बदल गया
इतना ज्ञान नहीं
किससे बात करें
तुम्हारे बिन
बात अब तो खत्म करिए
मन सूखे पौधे लगते हैं

अंजुमन में-
जीवन क्या है
 


 

 

जीवन क्या है

जीवन क्या है, कांच का घर है।
मौत के हाथों में पत्थर है।

पर्वत तो हो सकते हैं हम
सागर होना नदियों पर है।

मौसम, मजहब, चाहत, मंडी
घर पर किसका ख़ास असर है।

जब सपने नाख़ूनों में हों
आँखें होना बुरी खबर है।

विष पी कर हम अमर हो गए
मन का जादू बड़ा जबर है।

गाँव में बदली इस दुनिया की
जड़ में कोई महानगर है।

आँसू तुम कहते हो जिस
को
दुनिया का पहला अक्षर है।

1 जुलाई 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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