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अनुभूति में देवेन्द्र शर्मा इंद्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
मैं शिखर पर हूँ

साँझ के कंधे पर

गीतों में-
अब भी जीवित मुझमें
उस शहर से
एक गाथा का समापन
जब जब भी झंझा
मैं तुम्हारी लेखनी हूँ

मैं नवांतर
लौटकर घर चलो खुसरो
हम जीवन के महाकाव्य

  मैं तुम्हारी लेखनी हूँ

मैं तुम्हारी लेखनी हूँ
मोर पंखों की बनी हूँ!

मिट चुकी है
भोज-पत्रों पर लिखी
मेरी कहानी
मैं जहाँ जन्मी
वहाँ के जेल
आश्रम, अरण्यानी

मैं न अब कादंबरी
कामायनी की उर्वशी हूँ!

कभी शाकुंतल
अंगुलियों से हुआ
अभिसार मेरा
क्यों किसी दुष्यंत ने
फिर भूलकर
मुझको न हेरा

मंत्र-मुद्रा में जड़ी मैं
एक हीरे की कनी हूँ!

श्लोक जो मैंने रचे थे
शब्द कोमल
काँच के थे
राख हो
बिखरे पड़े वे फूल
नीली आँच के थे
मैं मिलन की नर्मदा हूँ
विरह की गोदावरी हूँ!

शाप से पथरा गया है
चाँदनी में
छंद मेरा
कौन आँचल में
सहेजे माधवी
मकरंद मेरा
मैं प्रभंजन के वलय में
कल्पतरु की वल्लरी हूँ!

७ सितंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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