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अनुभूति में गीता पंडित की रचनाएँ—

नए गीतों में-
तुम बिन जग
तुम मधुर एक कल्पना से
दीप मन के साथ जलते
बीत जाए न

 


 

 

तुम मधुर एक कल्पना से

तुम मधुर एक कल्पना से, संग मेरे चल रहे

अब विरह के गीत गाने
कोई पल ना आयेगा
मन के मधुबन में ओ मीते !
प्रेम फिर से गायेगा

रच रहे हैं गीत सुर सरगम में पल ये ढल रहे

खोल दो सब बंद द्वारे
मीत अंतर में पधारे
दीप अर्चन आरती बन
मन स्वयं को आज वारे
देख संध्या में सुनहरी भाव कैसे पल रहे

मोहनी मूरत है कैसी
डोरी बन खींचे मना
एक तुम्हारे प्रेम से ही
मन मेरा मंदिर बना

शब्द तुमसे ही चले थे अर्थ तुम संग चल रहे


११ जुलाई २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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