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अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

नये गीतों में- 
उकेरो हवा में अक्षर
धूप आगे बढ़ गयी

पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

गीतों में-
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो

 

हम टँगी कंदील के बुझते दिये

हम टँगी कंदील के बुझते दिये
जल रहे हैं सिर्फ बुझने के लिये

आग का केवल क्षणिक अस्तित्व है
आँधियों से भी घिरा व्यक्तित्व है
हम अभावों में सदा पलते रहे
हम तनावों में सदा जलते रहे
पी रहे संताप होठों को सिये

आस्थायें प्रश्न चिन्हों से लदी
कर रही विषपान यह अपनी सदी
एक झोंके से सभी हिल जायेगा
धूल में अस्तित्व ही मिल जायेगा
बस हमारे नाम खाली हाशिये

योजना टलती रहे हर मास पर
एक बस वेतन दिवस की आस पर
हर कदम पर हम सिमटते ही रहे
समय के पद चिन्ह से मिटते रहे
आत्म कुंठा में सदा घिर कर जिये

यह अधर की जिन्दगी कितनी विषम
हर अधर पर जड़ रहे लाखों नियम
शब्द ही जब चीख में ढल जायेंगे
हम तभी अपनी व्यथा कह पायेंगे
अन्यथा जीते रहें आँसू पिये

७ जुलाई २०१४

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