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अनुभूति में जय चक्रवर्ती की रचनाएँ

नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना

गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता

बना रहे घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य

दोहों में-
राजनीति के दोहे

 

काम आता ही नहीं कुछ

है न जाने
ज़िंदगी का कौन-सा
ये मोड!

आँख में हैं अहर्निश
दंगाइयों-सी
क्रूर चिंताएँ
बोझ
जिम्मेदारियों का कठिन
सिर पर तंग सीमाएँ
काम आता ही नहीं कुछ
गुणा-बाकी-जोड़!

चल रहा है साथ
ऐसे तो
निरंतर एक कोलाहल
नहीं आता है
कहीं से किन्तु कोई
स्वर सरस-स्नेहिल

गर्व था जिन पर गए सब
मीत वे ही छोड़!

सृष्टि जो मैंने रची
उसमें
स्वयं को खोजता हूँ मैं
कहाँ भूला पथ
हुई क्या चूक
खुद से पूछता हूँ मैं
निकल पाता काश मैं इन
सरहदों को तोड़!

११ मई २०१५

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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