अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कमलेश कुमार दीवान की रचनाएं

गीतों में-
अब अंधकार भी जाने कितने
आज़ादी की याद मे एक गीत
नहीं मौसम
दरबारों में खास हुए हैं
राम राम
लोकतंत्र का गान
लोकतंत्र की चिंता में
सब मिल सोचे रे भैया
 

  नहीं मौसम

आज गाने, गुनगुनाने का,
नहीं मौसम
नाते रिश्ते आजमाने का,
नहीं मौसम
घर बनाने और बसाने का,
समय है
उनको ढेलो से ढहाने का,
नहीं मौसम
आज गाने गुनगुनाने का
नही मौसम।

मेरे तेरे, इसके उसके
फेर में हम सब पड़े है
कुछ लकीरे खींचकर एक
चौखटे में सब जड़े हैं
कायदा है समय से
सब कुछ भुनाने का
आज अपने दिल जलाने का
नहीं मौसम।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम।

एक मकसद, एक मंजिल,
एक ही राहें हमारी
क्रातियाँ, जेहाद्द से दूने हुए दुःख
फिर कटी बाहें हमारी
जलजलों, बीमारियों का कहर बरपा है,
गुम हुई हैं बेटियाँ जब शहर तड़फा है
यातनाएँ, मौत पर दो चार आँसू
और फिर मातम, मनाने का
नहीं मौसम।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम।

दूर हो जाए गरीबी जब
जलजलों के कहर
सालेंगे नहीं
गोलियाँ, बारूद बम और एटम का
क्या करेगें युद्ध
पालेंगे नहीं
दरकते, और टूटते रिश्तों के पुल
बनाने का समय है
सरहदों को खून की
नदियाँ बनाने का
नहीं मौसम।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम।

८ जून २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter