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अनुभूति में कृष्णानंद कृष्ण की रचनाएँ—

नया गीत—
जाने किसकी नज़र लगी

गीतों में—
गुनगुनाना उनका
चाँद उतर आया है
पूत गया परदेस
बदली कहाँ गाँव की माटी
सर्दियों के दिन
सपनों में जीना
हमारे गाँव में

 

सपनों में जीना

कभी-कभी
अच्छा लगता है
सपनों में जीना।

दूर देश में
रात अकेले
नींद न आती है
ऐसे में
माँ की सूरत
थपकियाँ लगाती है

अच्छा लगता है
अपनों से
मिला दर्द पीना।

मान-मनौवल
हँसी-ठिठोली
चुहल और मनुहार
सूनेपन में
बेहद दुखता है
अनब्याहा प्यार

अच्छा लगता है
अपने घर का
आँगन-जीना।

सोचो
किसने इन आँखों की
नींद चुराई है
लगती है
हर चीज़ यहाँ
हो गई पराई है।

अपने आँगन बीच
खड़ी माँ
है असाध्य वीणा।

1 दिसंबर 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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