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अनुभूति में माधव कौशिक की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आने वाले वक्त का
घर का शोर-शराबा
समझ से बाहर है
हँसने का, हँसाने का हुनर

गीतों में-
चलो उजाला ढूँढें
टूटता संवाद देखा
पसरा हुआ विराम
संबंधों की बही
सागर रेत हुए
सूरज के सब घोड़े
क्षितिज की ओर

 

आने वाले वक्त का

आने वाले वक्त का, मंजर मुझे मालूम है
किस जगह ले जाएँगे, रहबर मुझे मालूम है।

जो भी सच कहने की जुर्रत, कर सकेगा शहर में
काट डालेंगे उसी का, सर मुझे मालूम है।

कितने दिन तक आप इसको, बाँध कर रख पाएँगे
टूट जाएगा किसी दिन, घर मुझे मालूम है।

तुम से ज्यादा जानता हूँ, मैं अमीरे-शहर को
घोंप देगा पीठ में, खंजर मुझे मालूम है।

आसमाँ से फूल बरसें, या कि बरसे चाँदनी
मेरे सर पर आएँगे, पत्थर मुझे मालूम है।

देवताओं और फरिश्तों, ने इसे ऐसा छुआ
हो गयी मैली मेरी चादर, मुझे मालूम है।

कलतलक तो इस कलम के, वास्ते मरते रहे
आज गिरवी रख रहे शायर, मुझे मालूम है।

२२ जुलाई २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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