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अनुभूति में पंकज परिमल की रचनाएँ

अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है

गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं 
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना

इस जीवन में

इस जीवन में चारों ओर छलावे हैं
किसी वृक्ष के चारों ओर
कलावे हैं

ये हल्दी के
हाथ छपी दीवारें हैं
गर्भगृहों में कुछ धुँधले उजियारे हैं
भक्त देखकर नए नज़ारे भौंचक हैं
आज देवताओं ने हाथ पसारे हैं
विश्वासों के बड़ के तने खोखले हैं
अब श्रद्धा के चारों ओर
दिखावे हैं

भगत मनचले
भजनों की मादक धुन हैं
देवों में ज़्यादा इन्सानी अवगुण हैं
गीता के उपदेश बेच खाए उसने
अब ज़्यादा चालाक समय के अर्जुन हैं
भरे-भरे भण्डार आज भगवानों के
मंदिर-मंदिर चारों ओर
चढ़ावे हैं

१ सितंबर २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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