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अनुभूति में राजेन्द्र वर्मा की
रचनाएँ-

नये दोहों में-
दिखे सूर्य गतिमान

नये गीतों में-
कागज की नाव
कैसा यह जीवन
जादूगरनी
मेरे बस का नहीं
सच की कौन सुने

अंजुमन में-
प्रार्थना ही प्रार्थना
प्रेम का पुष्प
माँ गुनगुनाती है
सत्य निष्ठा के सतत अभ्यास
हम निकटतम हुए

गीतों में-

आँसुओं का कौन ग्राहक
करें तो क्या करें
दिल्ली का ढब
बेच रहा हूँ चने कुरमुरे
बैताल
रौशन बहुत माहौल

दोहों में-
खनक उठी तलवार

 

दिखे सूर्य गतिमान

बाह्य चक्षुओं से दिखे, संभ्रम सत्य-समान
जैसे पृथ्वी स्थिर दिखे, दिखे सूर्य गतिमान

परहित में झुकते वही, जिनके हिय में प्यार
जलवाले बादल झुकें, झुकें वृक्ष फलदार

झंझा में करते नहीं, जो झुकने का कष्ट
तने वृक्ष की भाँति वे, हो जाते हैं नष्ट

दुनिया में गुनवंत जन, होते नहीं अनेक
एक सूर्य, इक चन्द्रमा, ध्रुवतारा भी एक

दुनिया दीपक पूजती, जिससे मिले उजास
यद्यपि उसके ही तले, अंधकार का वास

कभी जेठ की धूप है, कभी जेठ की धूप
एक धूप को दे दिये, किसने दो-दो रूप?

मंत्री-संत्री-आमजन, बेग़म और नवाब
मिट्टी से क्या-क्या बने, कोई नहीं हिसाब

रंगमंच संसार यह, अभिनेता हम लोग
किसको कैसी भूमिका, मिलने का संयोग

आशा जीवनदायिनी, संजीवनी-समान
इसके ही पाथेय से, जीवन-पथ आसान

संयम, सेवा, साधना, सदाचरण, सत्संग
सौख्य, सहज संवेदना, सकल सुमति के अंग

सत्य-प्रेम-करुणा-क्षमा, स्वार्थरहित सत्कर्म
इनके पालन से सदा, पोषित मानव-धर्म

निरालस्य, निर्भीकता, न्याय, नम्रता, धैर्य
सत्य-सजगता से मिले, मानवता को स्थैर्य

वाणी में पीयूष हो, हो नयनों में प्यार।
करुणा-विगलित चित्त हो, तो सुखमय संसार

पृथ्वी, पावक, पय, पवन, और गगन समवेत
पंचभूत से है बना, प्राणाधार निकेत

प्राणतत्व पाकर हुआ, पंचतत्व रमणीय
प्राणहीन हो तत्व तो, होता है शमनीय

जीव कभी पाता नहीं, काया में विश्राम
लेकिन काया के बिना, चले न इसका काम

तन की नश्वरता हमें, पहुँचाती है कष्ट
प्राणतत्व लेकिन कभी, होता नहीं विनष्ट

हम तो न्यासी देह के, लाभार्थी संसार
न्यासी को होता नहीं, सम्पत्ति पर अधिकार

जिसे ढूँढ़ता मैं रहा, यहाँ-वहाँ दिन रात
जीवन भर चलता रहा, वह मेरे ही साथ

यद्यपि वह अज्ञात है, किन्तु मुझे यह ज्ञात
वह मुझमें ही रह रहा, जिससे मैं संजात

अपने ही अपने नहीं, ग़ैरों की क्या बात
अपनी काया तक नहीं, देती अपना साथ

अपना होकर भी नहीं, है अपना संसार
गोमुख बैठा देखता, बही जा रही धार

पंचों ने ढीले किये, अपने-अपने हाथ
धन्यवाद, तुमने लिया, मुझको अपने साथ

१५ नवंबर २०१६

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