अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रामगरीब विकल की रचनाएँ-

गीतों में-
आँखों में रात कट गई
नवसृजन के गीत गाओ
मन जब रसखान हो गया
वेदना
शालिगराम
 


 

 

शालिगराम

कितना चन्दन, कितना पानी सोख गये
फिर भी, रंग न बदला शालिगराम का।

भोग भोगते, जमे हुए सिंहासन पर
ये पत्थर हैं, पत्थर कभी नहीं हिलते।
धूप-दीप-नैवेद्य ग्रहण करने आते
अँधियारे में लेकिन, देव नहीं मिलते।

रोटी की बैसाखी पर चलते-चलते
रस्ता नाप रहे हम चारों धाम का।

हर देवालय में, ये ही काबिज मिलते
घाट-घाट पर, इनका नाम लिखा देखा।
हवन-यज्ञ की समिधा हासिल करने में
उजड़े कितने नीड़, नहीं कोई लेखा।

इनकी स्तुतियों में, कितने ग्रन्थ बने
कोई पन्ना, नहीं हमारे नाम का।

स्वाती की बूँदों से, प्यास नहीं बुझनी
किसी भगीरथ को, आगे आना होगा।
बैठ किनारे, लहरों का लेखा कैसा?
सागर में गहराई तक जाना होगा।

कोरी प्रभुता का, कब तक वन्दन होगा
बिना मथे, यह नहीं हमारे काम का।

१ अप्रैल २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter