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अनुभूति में रणवीर भदौरिया की रचनाएँ-

गीतों में-
अंकुर प्रकाश के
इतनी भर जिंदगी
कुतर रहीं गिलहरियाँ
गीत एक टूटा है
ठहरी हुई ये जिंदगी

बैठे धुएँ की छाँव में

 

इतनी भर जिंदगी

दिन तो दौड़ भाग में बीते
साँझ गये घर वापस रीते
रातें कसी कमान सी
इतनी भर जिंदगी बची इंसान की

दिनभर बंजारिन सी डोले
अपने हृदय पटल कम खोले
उस पर भेष बदलना पल पल
टूटे पंख हवा में तोले
कन्धे चढ़ी थकान सी
इतनी भर जिंदगी बची इंसान की

नपी तुली मुस्कान मिली है
मौसम में सनसनी घुली है
अन जानी राहों के राही
रिश्तों की सुनसान गली है
अन ब्याही पहचान सी
इतनी भर जिंदगी बची इंसान की

२४ नवंबर २०१४

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