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अनुभूति में संजीव निगम की रचनाएँ—

गीतों में-
ओ हवाओं थाम लो
मन टीवी तन डिस्को
रात मुझे था चंदा दीखा
रेस के घोड़े

 

मन टीवी तन डिस्को

मन टीवी, तन डिस्को,
सम्बन्ध शेयर बाज़ार हुए
खुली व्यवस्था, खुली अवस्था
ग्लोबल सब व्यवहार हुए।

इन्टरनेट की साईट बनी हैं
दादा और नाना की गोदी
इलेक्ट्रोनिकी संदेशों ने
संवादों की गर्मी खो दी
खुद में मस्त एकाकीपन के
नए उपकरण उपहार हुए

फ़िल्मी पंडित बांच रहे हैं
संस्कृति के सारे अध्याय
आदिम युग का अंग प्रदर्शन
आधुनिकता का हुआ पर्याय
नए मूल्य परिभाषित करते
सीरियल ही संस्कार हुए

भावनाएँ विज्ञापन हो गईं
चटख रंग और ऊँची बातें
आस्थाएँ ब्रांडों में बदलीं
फैशन शो सा जिन्हें दिखाते
मार्केटिंग की लेसर किरणों के
अंतर्मन पर वार हुए

१६ जनवरी २०१२

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