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अनुभूति में सत्यनारायण की रचनाएँ—

नए गीतों में-
अजब सभा है
मैंने हलो कहा
रौशनी के लिये

है धुआँ तो

गीतों में-
बच्चे जैसे कथा कहानी
बच्चे अक्सर चुप रहते हैं

 

 

मैंने हलो कहा

घंटी बजी
और फोन पर मैंने हलो कहा
1
वही-वही
बिल्‍कुल पहले जैसे ही
धुली-धुली
उधर हँसी तुम
और इधर
बगुले की पाँख खुली
बँधी झील में सहसा
पूरनमासी गई नहा
1
होठों पर होंगी
अब भी कुछ बातें
रूकी-रूकी
हर सवाल पर
बड़ी-बड़ी दो आँखें
झुकी-झुकी
बस ऐसे ही बतियाने का
अपना ढंग रहा
1
बड़ी उम्र ने
खींची ही होंगी
कुछ रेखाएँ
बाल सफेद
हुए होंगे
शायद दाएँ-बाएँ
फिर भी होगा वही चेहरा
था जो कभी रहा
1
सुनो कहाँ
पूरा हो पाता है
अपना होना
खाली ही रह जाता
है मन का
कोई कोना
बहुत अकेला कर ही जाता है
कोई लम्‍हा

५ सितंबर २०११

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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