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अनुभूति में डॉ. तारादत्त निर्विरोध की रचनाएँ-

 

नए गीतों में-
एक अलग हाशिया
चितराम यादों के
शब्दों के पहरे
सुबह सुबह

गीतों में-
झरते हैं फूल-पात
थक गया हर शब्द
धूप की चिरैया
पानी का गीत
सुबह-सुबह

संकलन में-
ज्योतिपर्व- यादों के दीप
होली है- फागुन और बयार
 

 

धूप की चिरैया

उड़ती है पार-द्वार
धूप की चिरैया।

पानी के
दर्पण में,
बिंब नया उभरा,
बिखर गया
दूर-पास, एक-एक कतरा।
पलकों-सी मार गई
धूप की चिरैया।

पूरब में
कुंकुम का,
थाल सजा-सँवरा,
किरणों-सी दुलहन का,
रूप और निखरा।
आँगना गई बुहार
धूप की चिरैया।

यहाँ-वहाँ,
इधर-उधर,
फुदक-फुदक नाचे,
सुख-दुख की आँखों के,
शब्दों को बाँचे।
रोज़ पढ़े समाचार
धूप की चिरैया।

८ सितंबर २००८

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