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अनुभूति में डॉ. हरदीप कौर संधु
के हाइकु

 

 


तड़प रही
जल बिन मछली
बिन तेरे मैं।

तेरे प्यार की
मिली जो बूँद-बूँद
गागर भरी।

जीवन भर
बना परछाई तू
दुख-सुख में।

गले लगाऊँ
मेरे जो हैं अपने
सपनों में भी।

बोए जो काँटे
कर माफ उनको
गले लगाना

प्यार नहीं है
पानी का बुलबुला
फूट जाए जो।
 


प्यार की नींव
नहीं है कमज़ोर
हवा उखाड़े।

दर्द भागता
खिल उठा जीवन
प्यार से सींचा

दुख-दर्द की
वो कष्ट निवारक
दवा है प्रेम।
१०
मन में आशा
पिघलने लगता
दुख मोम-सा
११
हुई गलती
जीवन का किनारा
बन न पाया।
१२
दिल जो टूटे
मरने मत देना
अपनी इच्छा।

१ अप्रैल २०१६

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