अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में पीयूष पाचक की रचनाएँ
नई कविताएँ-

नई रचनाएँ-
चार व्यंग्य रचनाएँ

हास्य व्यंग्य में-
औरतें कुछ परिभाषाएँ
कारनामे
चार फुलझड़ियाँ
चिकने घड़े
तीन हंसिकाएँ
प्रश्नवाचक चिह्
प्रवृत्ति
प्रेम व्यथा
फ्रंट पेज पर
बस चल रही है
बीमारी
महान भारत
राजनीति
रावण के राज में
वायदों की छुरी
संयुक्त परिवार
संसद
साइज़

  प्रमुख चरण

लगाएँ सत्य पर ग्रहण
करें झूठ का वरण
सरकारी खज़ाने का चीर हरण
चुनाव हारें तो मरण,
जीते तो कुंभकरण
यही दो है देश के
नेताओं के जीवन के
प्रमुख चरण

राजनीति

राजनीति की गलियाँ
बड़ी संकरी हो गई है,
आम जनता खूँटे से बँधी
बकरी हो गई है,
चुनाव के त्यौहार तक
मतदान के वार तक
खिला-पिलाकर
लाल करते हैं,
वायदों की छुरी से
हलाल करते हैं।
 

महंगाई पे हास्य

 

घनघोर महंगाई का दौर
चलते हैं सब्ज़ीमंडी की ओर
फ़िल्मी दुनिया-सी
महंगी नज़र आती है,
आलू डैनी की तरह
आँखें दिखाता है,
गोभी भिंडी
ऐश्वर्या की तरह
कजरारे-कजरारे गाती है,
लेने जाओगे
दूर खिसक जाएगी,
आप कोई अभिषेक बच्चन
नहीं हो जो आपके पास आएगी।

सस्ताई पे व्यंग्य

जान की कीमत चंद नोट
नोटों से बिकते हैं अनमोल वोट
रद्दी के भाव, शहीदों की तस्वीरें
नैतिक मूल- औंधे मुँह गिरे
कोई लेने वाला नहीं ईमान को
ईमानदारी फोकट
सड़ रही है,
फिर कौन कहता है,
महंगाई बढ़ रही है।

२२ सितंबर २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter