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कवि की स्वाभाविक विशेषताएँ

स्वाभाविक विशेषताओं का विकास

संवेदना का विस्तार और अनुभूति की गहनता

अभिव्यक्ति की विविधता

समस्यापूर्ति क्या है

छंद क्या हैं

 

 

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अभिव्यक्ति की विविधता

अभिव्यक्ति का सुख निराला है। सहज सुन्दर और सरल अभिव्यक्ति की न तो कोई परिभाषा है और न कोई बंधन।

लेकिन जैसे जैसे हम अभिव्यक्ति के पथ पर आगे बढ़ते हैं अनुभूति की गहनता का अहसास होने लगता है, अभिव्यक्ति विकसित होने को मचलने लगती है और हमारी तलाश शुरू होती है भाषा, शैली, छन्द, संगीत और कला की ओर, जिसके साथ शब्दों को बुनते हुए हम बेहतर कारीगरी की ओर बढ़ते हैं।

क्या बेहतर भाषा, शैली ओर छन्द की कारीगरी ही अभिव्यक्ति का विकास है?
नहीं ऐसा नहीं है।

संसार की सबसे सुंदर कविताएँ शायद सबसे सरल हैं — कबीर और रहीम के दोहे इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। पर उनकी कारीगरी थोड़ी भिन्न है — जैसे सफेद रेशम पर टंके हुए सफेद मोती। उनमें है अनुभव की परिपक्वता, सामाजिक उपयोगिता, आदर्श की स्थापना और सबसे बढ़ कर सामान्य जन के लिये सरल व्यवहारिक शिक्षा।

एक सामान्य सी बात यह है कि यदि इन्सान सरल है तो उसकी भाषा में सरलता मिलेगी और अगर इन्सान कलात्मक है तो उसकी कविता में भी कलात्मकता मिलेगी। यह अपनी अपनी तबीयत की बात है। जैसे कुछ लोग सफेद कपड़े पहनना पसंद करते हैं और कुछ रंगीन। कुछ लोग सफेद कपड़ों में
गहरी कारीगरी पसंद करते हैं कविता भी इसी तरह है।

कविता अपने व्यक्तित्व का दर्पण है। कबीर और रहीम का सरल सात्विक व्यक्तित्व उनकी कविता में झलकता है। इन्सान की शैक्षिक योग्यता, परिस्थिति, उसके व्यक्तिगत रुझान, और मनोभावों को व्यक्त करती है कविता।

बहुत से कवियों को पढ़ते समय हम देखते हैं कि एक ही कवि की दो कविताएँ दो तरह की हैं एक बिलकुल सरल और दूसरी बहुत कठिन। कविता के कठिन या सरल होने के कई कारण हो सकते है।

जैसे एक ही स्वभाव का व्यक्ति भी शादी, घर, कार्यालय और शाम को घूमने के समय अलग अलग तरह के कपड़े पहनता है और अलग अलग तैयार होता है उसी तरह एक सामान्य कवि भी अवसर और जरूरत के मुताबिक अपानी कविता को अलग अलग रंग देता चलता है।

शैक्षिक योग्यता कविता में एक गहरा परिवर्तन लाती है। जिन कवियों को संगीत की जानकारी है या संगीत के प्रति रुझान है उनकी कविता में गीतात्मकता मिलती है। संगीत संबंधी शब्द अधिकता से मिलते हैं और जो कवि चित्रकार हैं उनकी कविता उनके चित्रकार होने का पता देती हैं। महादेवी वर्मा और रवींन्द्रनाथ टैगोर की कविताएँ इसका सुंदर उदाहरण हैं।


कविता के लिये विषय का चुनाव

समय के साथ आज जब तकनीकी शिक्षा महत्वपूर्ण हो गयी है तकनीकी विषय भी कविता में शामिल हो गए है। आर्किटेक्ट या इंजीनियर (या कोई अन्य तकनीकी विशेषज्ञ) जब कविता लिखता है तो वह भाषा में तकनीकी अनुभव को भी शामिल करता है और अपने युग के इतिहास को भी। इस तरह वह अपनी भाषा को तकनीकी अनुभव से समृद्ध करता है।
आइये
अनुभूति में कुछ उदाहरण देखें—
 

  • सिविल इंजीनियर नरेश सक्सेना जब कविता लिखते हैं तो कांक्रीट और ईंटों के बीच भी दर्शन और लय को जन्म देते हैं (देखें उनकी कविताएँ कांक्रीट और ईंटें) इन्हें पढ़कर पहचाना जा सकता है कि यह कवि कांक्रीट और ईंटों के साथ गहरा जुड़ा हुआ है।

  • अनुभूति में एक और कवि सुभाष काक की कविता 'अश्वताल' या 'डरा पक्षी' के देखें। ये सरल अतुकांत छंद ऋगवेद की किसी ऋचा की सी लय में का बोध कराते हैं जो वेद में उनकी गहरी दिलचस्पी की सूचना देते हैं। साथ ही इनमें प्रकृति के सौंदर्य और लोक गीतों का खुला आंगन है जो पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

  • कम्प्यूटर का नियमित इस्तेमाल करने वाले बृजेश कुमार शुक्ल की कविता 'तारों के जाल' इंटरनेट के व्यापक प्रयोग का अनुभव अपने में संजोए हुए है। जाहिर है यह कविता कम्प्यूटर इस्तेमाल करने वाले हर व्यक्ति के मन से सीधा रास्ता बना लेती है।

एक बात जो इन सभी कविताओं में समान है वह यह है कि न इनमें कोई छंद है ना ही भारी भरकम शब्द है। दिल की अनुभूतियों को बड़े ही सरल तरीके से पूरी ईमानदारी के साथ सच और सीधा व्यक्त किया गया है। साथ ही ये कविताएँ सामान्य भाषा के बावजूद अपने अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं को बड़े ही अनोखे तरीके से व्यक्त करती हैं जो इनके अत्यंत सामान्य शब्दों को विशेष बनाती हैं।

नरेश सक्सेना हिन्दी के वरिष्ठ कवि हैं और कांक्रीट और ईटों को देखने और अनुभव करने की उनकी दृष्टि में जीवन के सत्य की एक दाशर्शनिक अनुभूति है। साथ ही वे वास्तुविद के शब्द और उसके अनुभव से हिन्दी साहित्य का परिचय भी कराते हैं। अपने–अपने विषय से साहित्य को
समृद्ध करना एक बड़ी बात है। सदियों बाद भी लोगों को पता चलता है कि इस भाषा को बोलने वाले यह काम करना जानते थे।

इस लेख को पढ़ने वाले अनेक लोग डाक्टर इंजीनियर कम्प्यूटर प्रोग्रामर बिजनेस मैनेजर अध्यापक आर्किटेक्ट संपादक और न जाने क्या क्या होंगे। जिनके अपने अपने विशेष अनुभव होंगे अगर ध्यान से सोचें तो समझ में आने लगेगा कि अपने काम के विभिन्न पहलुओं को कविता के साथ कैसे जिया जा सकता है। इससे न केवल काम मे रुचि बढेगी बल्कि इस अनुभव के साथ लिखी गयी कविता अचानक एक बहुमूल्य
कृति बन जाएगी। अपने समय की दस्तावेज अपनी अलग पहचान के साथ।

उदाहरण के लिये दुबई की कार्पोरेट दुनिया का कोई व्यक्ति एक रात लिख सकता है —

आज सुबह
कम्प्यूटर के पर्दे में
गुम गया दिनभर का व्यापार!

सौ हज़ार डालर ट्रांसफर नहीं हुए दुबई से मुम्बई
फोन पर फोन
लेखाकारों के विमर्श
बैंक अफसरों के आश्वासन
और कम्प्यूटर की खिड़की पर खोजते रहे बदहवास
मास्को से दुबई,, दुबई से लंदन,
लंदन से न्यूयार्क, न्यूयार्क से मुंबई
कहां हैं दस्तावेज़?

बस एक खिड़की पर
उलझा रहा व्यापार
देर रात तक !

सच मानिये रात को एक ऐसी कविता लिखने बाद ऐसी नींद आयेगी मानो दिन भर का बोझ सिर से उतर गया। काम को कविता के साथ जोड़ कर न केवल कवि के मन को शांति मिलती है बल्कि साहित्य को भी समृद्धि मिलती है।

इसलिये वो सारे कवि जो निरंतर —
जानेजाना प्यार कर लो
थोड़ा दिल बेकरार कर लो
जैसी तुकबंदियाँ लिख लिख कर अपना समय कविता में बेकार कर रहे हैं, से अनुरोध है कि यदि सचमुच अच्छी कविता लिखना चाहते हैं तो सबसे पहले एक नया विषय चुनें। ऐसा विषय जो विशेष रूप से व्यक्तिगत कार्यों, अभिरुचियों और दैनिक जीवन की विशेष अनुभूतियों
और विशेषताओं से जुड़ा हुआ हो।
 

अब आज के दूसरे कवि के बारे में बात करते हैं। सुभाष काक अपेक्षाकृत नये कवि हैं और वे कश्मीर की सुंदर वादियों के सुनहरे दिनों, वहां की अव्यवस्था से उत्पन्न खिन्नता और उदासी को अपनी कविता में बड़ी सादगी से व्यक्त करते हैं। उनकी लिंक की गयी कविताओं में कोई तकनीकी बात नहीं है लेकिन विस्थापित होने की संवेदना और वेदों के अध्ययन में रुचि का उनकी कविता पर गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। उनकी ये दोनों कविताएँ जीवन के अनुभव और अध्ययन की दिशा को प्रस्तुत करती हैं।

हममें से अनेक अपने–अपने देश से दूर नयी–नयी जगहों पर आ बसे हैं। नयी जगह की विविधताएँ और पुरानी जगह की विशेषताएँ अनुभव की नयी दुनिया खोल देती हैं। ज़रूरत है तो सिर्फ उन्हें गहरे पैठ कर अनुभव करने और रचने की। अनुभव के साथ साथ अभिरुचियाँ, दैनिक कार्यकलाप तथा अध्ययन कविता को परिपक्वता प्रदान करते हैं।

यह हमें अपने आप खोजना पड़ता है कि हममें क्या विशेष है जिसे हम सुंदरता से रच सकते हैं। यह एक गहरा अंतद्र्वन्द्व हो सकता है पर कभी कभी यह अतद्र्वन्द्व भी सुंदर कविता बन सकता है। समुद्र मंथन से ही तो रत्न प्राप्त होते हैं। इसे देखते हैं एक और कविता में अश्विन गांधी की मद्ध समंदर। शिल्प और शब्दों के चुनाव में सरलता लिये हुए यह कविता विदेश में बसे एक व्यक्ति की सामान्य सी सम्वेदना को गहराई से व्यक्त करती है। और इस तरह उस सामान्य संवेदना को विशेष बनाती है।

और अब बृजेश कुमार शुक्ला की कविता तारों के जाल के बारे में। उन्होंने अभी हाल में ही लिखना शुरू किया है। सबसे पहले तो इससे यह शिक्षा ली जा सकती है कि कविता लिखना कब शुरू किया यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है, कविता लिखने का मन हो तो अच्छी कविता कभी भी लिखी जा सकती है। अनुभूति में नयी हवा के अधिकतर कवि लम्बा समय कंप्यूटर पर बिताते हैं लेकिन किसी ने भी आज तक इससे संबंधित कविता लिखने की कोशिश नहीं की। आसपास की
सबसे साधारण और अकाव्यात्मक वस्तु को कविता में सुंदरता से रचने का यह कविता एक सुंदर उदाहरण है।

हर व्यक्ति अनुभवों का अनमोल खज़ाना है। हम अपने को कितना भी साधारण क्यों न समझते हों आपके हमारे अनुभव इस विश्व में अनोखे हैं। उनको पहचानने भर की देर है। गहराई से विश्लेषण करने की कोशिश कीजिये और फिर उस अनुभव को रच दीजिये। अपनी रूचि के अन्य कवियो को पढ़ते रहना अच्छी बात है। दुनिया और समाज में दिलचस्पी और भी अच्छी बात है। प्रकृति और प्रेम की सुंदरता से कौन अभिभूत नहीं होताॐ पर्वों का रंग किस पर नहीं चढ़ताॐ आपनी अलग विविधता और विशेषता का ध्यान रखें। समय और निरंतर अभ्यास हर कला की तरह काव्यलेखन को भी सुधारता है।

जिस तरह सिर्फ कारीगरी होने से कोई कपड़ा परिधान नहीं हो जाता उसी तरह अच्छे–अच्छे शब्द कविता नहीं हो जाते। सिर्फ तुक से भी कविता नहीं हो जाती।

कोई मीठी सी बात कोई गहरा अनुभव लय के साथ कहा हुआ कविता बनता है। लय का अनुभव और उसके कहने का तरीका बहुत बार स्वाभाविक और जन्मजात होता है पर अगर हमें लगता है कि हम कवि नहीं हैं फिर भी कुछ अच्छा सा लिखना या कहना चाहते हैं तो सबसे आसान तरीका यह है कि तुक और लय का सहारा लिया जाए।

तुक हर जगह मिले, लय हर जगह हो यह ज़रूरी नहीं पर एक कविता में बीच बीच में इसका इस्तेमाल कर के शब्दों को कविता में ढाला जा सकता है।

पर यह कैसे किया जा सकता है इसके बारे में बात करेंगे अगले अंक में।

 

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