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अनुभूति में डॉ. उमेश महादोषी की रचनाएँ-

क्षणिकाएँ-
कुछ क्षणिकाएँ
कुछ और क्षणिकाएँ

  कुछ और क्षणिकाएँ

१.
माँगा हमने
सुबह चुल्लू भर पानी
दोपहर कोवादा मिला
एक प्याला अमृत का
पिलाया गया घड़ा भर जहर
शाम को

२.
तेरी तस्वीर में
हर रंग भरकर देखा है
ये बिलकुल नहीं बदलती है
कौन सी आभा की
रेखाओं से बनी है
कि हर क्षण
सिर्फ अपना-सा दमकती है

३.
तुम्हारी तस्वीर में
तुम्हारी रंगत देखकर
झूम जाता हूँ
और तुम्हारी खुशबुओं में
डूब जाता हूँ
पर तुम पास होते हो तो
तुम्हारी रंगत और खुशबू - दोनों को
भूल जाता हूँ
मैं इस कदर
तुममें डूब जाता हूँ

४.
छू नहीं पाई
गहराई
तो जीनी पड़ी हमें
सागर पार
भरपूर तन्हाई
कितनी भयंकर है, आह!
काला पानी की सजा

५.
बहुत उड़ लिए
आकाश में पक्षी प्यारे!
अब उतरो धरती पर
सूँघो तुम भी
लहू की गंध
देखो बने
बारूद के तारे

६.
आकाश को उतार कर
जिस्म से
मैं धरती होना चाहता हूँ
हे प्रतीक !
हटो अब
अपनी जगह
मैं स्वयं लेना चाहता हूँ

७.
कब तलक
अट्टहास करोगे
कान मूँदकर
हड्डियाँ
क्रांति का
शंख होती हैं

८.
जितने तीर तुम्हारे तरकश में थे
तुमने चला लिए
हमारी देह मगर खाली रही
घाओं के लिए
अब तुम सँभालो देह अपनी
कुछ तीर हमारे पास भी हैं
देखना है
वक़्त कौन सा इतिहास रचता है

९.
खुदा रे !
तेरी खुदाई
तू ही जाने
मुझे तो
बस इतना बता दे
बन्दे की
जिंदगी के माने
समझा दे !

१७ सितंबर २०१२

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