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अनुभूति में सारिका कल्याण की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
तब मीरा को राम मिलेंगे
तितली अंगीठी जुगनू
तुम आना
निराधार
मीठी चवन्नी
सपने और यथार्थ

 

तुम आना

आसमान की हथेली से जब,
सूरज फिसलने लगे
कत्थई रंग में जब शाम,
अपने को रंगने लगे
अरमान मचलने से लगें,
लबों की थिरकन
दिल की धड़कन बन
तुमको आवाज़ दे
तुम आनाॐ
दस्तक दे कर दिल पे
और मैं
पलकों के झरोखे से
तुम्हे देख पाऊं
आना की
पलकों के बंद होते ही
तुम्हारी दुनिया में खो जाती हूँ
आना कि
हर ख्वाब में इंतज़ार तुम्हारा रहता है
यादों में आना तुमॐ
याद है इक रोज़
तुमने वो गुलाबी फूल दिया था
आज भी वो सूखा फूल
मेरी किताब में सोता है,
जब भी तुम मेरे ख्वाब में आते हो
वो फिर से खिल उठता है
तुम्हारी मुस्कान की तरह,

आना कि
तुम्हारे आने से सब कुछ नया–नया सा लगता है
आना कि
उस फूल के खिलने का
अक्सर इंतज़ार रहता है
आना तुम एक बार फिरॐ

९ जनवरी २००५

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