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अनुभूति में स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' की रचनाएँ-

 

छंदमुक्त में-
गुमशुदा
पुरुषोत्तम
हिन्दुत्व

 

गुमशुदा

क्या तुमने देखा है?
एक श्वेतवसना तरूणि को,
जो असंख्य वर्षों की है
पर लगती है षोडशी।
इस रूपबाला को देखे हुए
बहुत दिन हो गए,
मेरे नयन पथराने को आए,
परन्तु दर्शन नहीं हो पाए।

मैंने सुना है,
उस बाला को कुछ भौतिकवादियों ने
सरेआम जलील किया था।
अनैतिकता ने भी
अभद्रता की थी उसके साथ।

बाद में
भ्रष्टाचार ने उसका चीरहरण
कर लिया था।

और ये भी सुना है
कि कोई बौद्धिकवादी, कोई विदुषक
नहीं आया था उसे बचाने।
सभी सभ्यता की सड़क पर
भ्रष्टाचार का यह अत्याचार
देख रहे थे।

कुछ तो इस जघन्य कृत्य पर
खुश थे,
और कुछ मूक दर्शक बने
खडे रहे।
बहुतों ने तो आखें भी फेर ली
उधर से,
और कुछ ने तो इन्कार ही कर दिया
कि ऐसा भी कुछ हुआ था।

तब से,
ना मालूम वो युवती कहाँ चली गई।
शायद उसने अपना मँुह
कहीं छुपा लिया है,
या फिर कर ली है आत्महत्या,
कौन जाने।

अगर तुम्हें कहीं वो मिले
तो उसे उसके घर छोड़ आना।

उसका पता है :
सभ्यता वाली गली।
वह नैतिकता नाम के मकान में रहती थी
और उस युवती को हम
"मानवता" कहते थे।

२० जनवरी २००२

 

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