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शुभ दीपावली

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दीप मन के जले

दीप मन के जले, नवसृजन के जले
रात मावस की दीपावली हो गई

रूप का चित्र शब्दों में ढलता नहीं
देखकर कौन पत्थर पिघलता नहीं

तुम चले गंध चंदन की लेकर चले
हर तरफ एक अजब खलबली हो गई

देह कंचन नयन खंजनी मदभरे
रसभरे बोले ऐसे हों मोती झरे

उर्वशी छोड़ आई हो अलका पुरी
या कोई कामना मन चली हो गई

पग महावर लगा बोझ से थक गए
चूड़िया क्या बजीं सात स्वर जग गए

गीत तुम गुनगुनाती चलीं जिस गली
गांव की वह गली, बावली हो गई

सजीवन मयंक
9 नवंबर 2007

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