अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

शुभ दीपावली

अनुभूति पर दीपावली कविताओं की तीसरा संग्रह
पहला संग्रह
ज्योति पर्व
दूसरा संग्रह दिए जलाओ

मंगलमय दीपावली
(मुक्तक)

1
शक्तिमान हो न्याय सत्य की सदा विजय हो
भ्रष्टाचारी गहन अँधेरा क्रमश: क्षय हो।
राष्ट्रभक्ति की ज्योति प्रकाशित हो हर दिल में
पावन दीपावली सभी को मंगलमय हो।।


2
जलाकर दीपक अँधेरा छाँट देंगे
सभी मिलजुल कर उजाला बाँट लेंगे।
चार दिन की चाँदनी के ही सहारे
अँधेरी रातें सभी फिर काट लेंगे।।


3
उजियारे का अँधियारे से नाता गहरा होता है
इसीलिए तो अँधकार के बाद सबेरा होता है।
हो प्रकाश से प्रेम किंतु तम से भी घृणा न करना
कहते हैं सब दिया तले ही सदा अँधेरा होता है।।

-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
16 अक्तूबर 2006

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter