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शुभ दीपावली

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पास आई दिवाली

घर में उगी है घास पास आई दिवाली
मैं हो गया उदास पास आई दिवाली

माँ लक्ष्मी को ऐसे रहीं घूर औरतें
जैसे खड़ी हो सास पास आई दिवाली

बत्ती बना के दीये में डालेंगे डिग्रियाँ
एम.ए. ओ' बी.ए. पास पास आई दिवाली

महँगाई को सौतन की तरह कोस रही हैं
हो इसका सर्वनाश पास आई दिवाली

अपना भी अगर होता तो सीधा उसे करते
कोई उलूकदास पास आई दिवाली

सपनों से और यादों से फेंटे ही जा रहे
हम ज़िंदगी की ताश पास आई दिवाली

वीरेंद्र जैन
1 नवंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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