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                                            सुनो 
                                            अंधेरा
 सुनो अंधेरा बहुत घना है
 नहीं सूझता हाथ हाथ को
 कोई नन्हा दिया जलाओ
 या फिर कोई गीत सुनाओ
 
 संवेदन की राधा मन के आंगन में उदास बैठी है
 उधर कन्हैया के प्राणों में कूटनीति कुब्जा पैठी है
 आंखें बन्द हुई उद्धव की सिंहासन के ध्यान योग में
 भ्रमरगीत सो गया समूचा
 सूर बनो फिर उसे जगाओ
 या फिर कोई गीत सुनाओ
 
 अगर `गीत गोविंद' जगा तो मरुथल में मधुवन महकेगा
 मौसम की सूखी डालों पर फिर से वृंदावन चहकेगा
 सरिताएँ हो गयी विषैली मेघों से तेज़ाब झरा है
 सगर सुतों की इस पीढ़ी तक
 रस की नई धार पहुँचाओ
 या फिर कोई गीत सुनाओ
 
 रोम जल रहा है पर `नीरो' वंशी लिये बचा बैठा है
 कुटिल कालिया धीरे- धीरे पूरा सूर्य पचा बैठा है
 आज `द्वारिका' के हाथों से वृंदावन निर्वसन हो रहा
 दीन सुदामा की प्रतिभा को
 कोई नया द्वार दिखलाओ
 या फिर कोई गीत सुनाओ
 
 पात- पात से अश्रु झर रहे नंदन की उदास छाती पर
 सौ-सौ आशीर्वाद बरसते हैं ऋतुहंता परघाती पर
 अस्त्रों की झंकार झनाझन सेनाएँ अब व्यूहबद्घ हैं
 कुरुक्षेत्र के तुमुल समर में
 अब तो गीता नई सुनाओ
 या फिर कोई गीत सुनाओ
 
 --डॉ. राम सनेही लाल शर्मा `यायावर'
 1 नवंबर 2007
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