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८. ६. २००९

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दरबारों मे ख़ास हुए हैं

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दरबारों में
खास हुए हैं
आम लोग सारे।

गलियारों में
पहरे
...पहरे
जनता दरवाज़ों पर ठहरे,
मुट्ठी भर जनतंत्र यहाँ पर
अधिनायक सारे,

राज निरंकुश
काज निरंकुश
इनके सारे बाज निरंकुश
लोक नहीं
मनतंत्र यहाँ पर
गणनायक हारे।

ठहर गए
कानून नियम सब
खाली सब आदेश
मुफलिस की
आँखों मे आँसू

हरकारे दरवेश,
ऊँच..नीच के भेद वही हैं
काले वही,
सफ़ेद वही है
स्वेच्छाचारी औ' अनिवारक
मणिवाहक सारे।

- कमलेश कुमार दीवान

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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