| भेजता ऋतुराज किसलय-पत्र पर
 इंद्रधनुषी रंग वाले
 गंध के हस्ताक्षर!
 झूमते हैं खेतवन-उपवन
 हवा की ताल पर
 थिरकते
 बंसवारियों के अधर पर
 फिर वेणु के स्वर
 विवश होकरपंचशर की छुअन से
 लग रहे उन्मत्त
 सारी सृष्टि के ही चराचर!
 आज नख-शिखफिर प्रकृति के
 अंग मदिराने लगे,
 और निष्ठुर
 पत्थरों तक
 सुमन मुस्काने लगे
 पिघलता है पुनःकण-कण का ह्रदय
 हर कहीं पर अब चतुर्दिक
 फागुनी मनुहार पर!
 --शिवाकांत मिश्र 'विद्रोही' |