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९. ६. २०१४

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समय नदी

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समय- नदी ले गयी बहा कर
पर्वत जैसी उम्र ढहा कर
लेकिन छूट गए हैं तट पर
कुछ लम्हें रेतीले
।1
झौकों के संग रह रह हिलती
ठहरी हुई उमंगें
ठूँठ-वृक्ष पर ज्यों अटकी हों
नाज़ुक चटख पतंगे

बहुत निकाले फँसे स्वप्न पर
जिद्दी और हठीले
।1
कुछ साथी हैं सच्चे मोती
जीवन खारा सागर
रहे डूबते - उतराते हम
शंख सीपियाँ ला कर

अभिलाषाओं के उपवन को
घेरें तार कंटीले
।1
रूखे सूखे व्यस्त किनारे
लहरें बीते पल की
ज्यों खंडहर के तहखाने में
झलकी रंगमहल की

शब्द गीत के कसे हुए हैं
तार सुरों के ढीले

- संध्या सिंह

इस सप्ताह

गीतों में-

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संध्या सिंह

अंजुमन में-

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देवेश देव

छंदमुक्त में-

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भास्कर चौधरी

क्षणिकाओं में-

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रचना श्रीवास्तव

पुनर्पाठ में-

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नीरज त्रिपाठी

पिछले सप्ताह
२ जून २०१४ के अंक में

गीतों में-

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ओमप्रकाश तिवारी

अंजुमन में-

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राजेन्द्र पासवान घायल

छंदमुक्त में-

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सविता मिश्रा

कुंडलिया में-

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला

पुनर्पाठ में-

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मोहित कटारिया

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
 

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