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अभिव्यक्ति-तुक-कोश

२०. ७. २०१५-

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रूप अनोखे

  जीवन की डोरी को साधे
नटनी जैसी चलती तू!

माँ-बाबा के घर-आँगन की
तू ही तो किलकारी है
पावन कर दे कोना-कोना
तू तुलसी की क्यारी है

बेटे कुल-दीपक कहलाते
कंदीलों सी जलती तू!

भाई की नटखट बातों पर
मन ही मन मुसकाती है
सुख-दुख में परछाई बनकर
माँ-सा प्यार लुटाती है

संबंधों की ओढ़ चुनरिया
कितने रूप बदलती तू!

प्रियतम की साँसों में घुलकर
चन्दन-सा महकाती है
सूखे-बंजर, नीरव तट पर
बन सरिता बह जाती है

गीली माटी-सी चक्के पर
नये रूप में ढलती तू!

दिनकर के गालों पर लाली
तूने ही बिखराई है
आम्र-बौर ने मादक खुशबू
तुझसे ही तो पाई है

जीवन के हर इक चेहरे पर
रंग अनोखे मलती तू!

- मालिनी गौतम
इस सप्ताह

गीतों में-

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मालिनी गौतम

अंजुमन में-

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कल्पना रामानी

छंदमुक्त में-

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अश्विनी कुमार विष्णु

छोटी कविताओं में-

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सुधीर विद्यार्थी

पुनर्पाठ में-

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प्रदीप कुमार

पिछले सप्ताह
१३ जुलाई २०१५ के अंक में

गीतों में-

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योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण

अंजुमन में-

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ओमप्रकाश तिवारी

नयी हवा में-

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तुलसी पिल्लई

लंबी कविता में-

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रामदरश मिश्र

पुनर्पाठ में-

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सतीशचंद्र उपाध्याय

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी