पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. ९. २०२३  

अंजुमन उपहार काव्य संगम गीत गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे पुराने अंक संकलन अभिव्यक्ति
कुण्डलिया हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला रचनाकारों से

      आँधियों की बस्तियों में

 

 

आँधियों की बस्तियों में एक दीपक जल रहा है
खा रहा झोंके अहर्निश जूझता पल-पल रहा है
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टूटतीं हैं खिड़कियाँ
है झाँकती घायल किरन
हो रहा चारों तरफ़ दृढ़ श्वाँस का आवागमन
डगमगाते  दीप  की  राहों में गहरी खाइयाँ
खाइयों में ही उगा एक झाड़ बन संबल रहा है
फिर भी दीपक जल रहा है
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काटता घनघोर तम
लेकर हथौड़ी ज्योति की
कसमसाकर निकल आता वो सुदर्शन मौक्तिकी
बंद था जो सीपियों में एक युग से तिमिर संग
सज गया माला में शोभित कंठ में झिलमिल रहा है
अब भी दीपक जल रहा है
1
कौन है जो भटकता
चारों तरफ़ है चक्षु खोले
जुगनुओं के इस नगर में दीपकों की ज्योति मोले
मोम बनकर पिघलना है जानता पाषाण भी
है उसी को मूल्य लौ का जो निरन्तर चल रहा है
सच है दीपक जल रहा है
.1
- जिज्ञासा सिंह

इस माह

गीतों में-

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जिज्ञासा सिंह

अंजुमन में-

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भूपेन्द्र सिंह

तेवरियों में-

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ऋषभदेव शर्मा

दिशांतर में-

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सिंगापुर से विनोद दुबे

छोटे छंद में-

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अनुपमा त्रिपाठी "सुकृति" के हाइकु

पुनर्पाठ में-

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देवेन्द्र आर्य
 

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विगत माह
अगस्त के अंक में

गीतों में- पद्मा मिश्रा, अंजुमन में- दिगंबर नसवा, छंदमुक्त में- तृषान्निता बनिक, दिशांतर में- यू.एस.ए. से भाविक देसाई, छोटे छंद में- आकुल के दोहे, पुनर्पाठ में- देवव्रत जोशी

 

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन / गजल संपादक- भूपेन्द्र सिंह
     

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