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अनुभूति में रंजन गोरखपुरी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अधूरी नज्म की तहरीर
कुछ ख्वाहिशों को
कुछ निशां रह गए
बात करता हूँ

 

अधूरी नज़्म की तहरीर

अधूरी नज़्म की तहरीर जैसे,
गुज़ारे वक्त की तस्वीर जैसे

वो दौर-ए-जाम और वो लडखडाना,
को‌ई बिगड़ी हु‌ई तकदीर दीर जैसे

मिज़ाज़-ए-लखन‌ऊ है शायराना,
को‌ई गालिब है को‌ई मीर जैसे

लगा जाता है जब भी वक्त मरहम,
चुभा जाता है को‌ई तीर जैसे

तुम्हारी याद है महफ़ूज़ दिल में,
चिराग-ए-नूर की तनवीर जैसे

क‌ई तूफ़ान हैं कतरे की जानिब,
समंदर की यही तासीर जैसे

मुझे बिखरा हु‌आ पा‌ओगे "रंजन",
को‌ई टूटी हु‌ई ज़ंजीर जैसे

११ मई २००९

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