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अनुभूति में रंजन गोरखपुरी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अधूरी नज्म की तहरीर
कुछ ख्वाहिशों को
कुछ निशां रह गए
बात करता हूँ

 

कुछ ख्वाहिशों को

कुछ ख्वाहिशों को बेहद मुश्किल है जान पाना,
पत्थर से चोट खाके लहरों का लौट आना

खुश्बू, बहार, हसरत, तन्हाइयाँ, समन्दर,
किरदार मुख्तलिफ़ हैं किस्सा वही पुराना

बूढ़ा दरख्त अक्सर करता था ये गुज़ारिश,
फल चाहिए तो ले लो पत्थर नही चलाना

दीदार जब हुआ तो छलकीं थीं ऐसे खुशियाँ,
गोया किसी नदी का सागर की ओर जाना

यादों की उस रिदा में रौशन हरेक लम्हा,
पूनम की रात जैसे तारों का टिमटिमाना

शायद गुलाब कोई खिल जाए ज़िन्दगी में,
मैं सीखने लगा हूँ काँटों में मुस्कुराना

इक रोज़ आईना भी तंग आके बोल बैठा,
अच्छा नही है खुद का खुद से ही रूठ जाना

कुछ ख्वाब टूटते हैं सोज़-ए-कलम की खातिर,
तखदीर जानती है शायर को आज़माना

पूजा खुदा बनाकर ताउम्र उनको "रंजन",
जिनके लिए कहा था बेहतर है भूल जाना

११ मई २००९

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