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अनुभूति में अरुण तिवारी 'अनजान'  की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
आँख का काजल
आग पानी
आइना
दिल अब भी तुम्हारा है
हर चाल जमाने की

अंजुमन में-
अगरचे मुहब्बत जो धोखा रही है
अब इस तरह से मुझको
आग
क्यों लोग मुहब्बत से
कुछ तो करो कमाल
कहने पे चलोगे
गम ने दिखाए ऐसे रस्ते
दिल में गुबार
नयन टेसू बहाते हैं
पहले से नहीं मिलते
बड़ी मुश्किल-सी कोई बात
ये दुनिया

 

आँख का काजल

आँख का काजल, चुरा लेती है दुनिया
काम ऐसे भी, बना लेती है दुनिया

हश्र बरपा, करके रख देती है यों भी
राई का पर्वत बना लेती है दुनिया

बेठिकाना उसके दिल की वुस्अतें हैं
सब को अपने में समा लेती है दुनिया

एक की बातें बता कर दूसरों को
कौन-सा सुख है जो पा लेती है दुनिया

जानती है सच मगर कहती नहीं कुछ
आदमी का यों मज़ा लेती है दुनिया

१ जुलाई २०१७