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अनुभूति में ओमप्रकाश खुराना 'आतिश' की रचनाएँ-

अंजुमन में—
जाने पहचाने

नगमे हमेशा
बरसता अब्र है
मुझको यहाँ
सारे जहाँ पे राज मेरा
 

  जाने पहचाने कहीं हैं

जाने-पहचाने कहीं हैं, और अनजाने कहीं
हैं पराए अपने तो, अपने हैं बेगाने कहीं

आग भी होगी यकीनन उठ रहा है जो धुआँ
क्या हक़ीकत के बिना, बनते हैं अफ़साने कहीं

चाक दामन कर लिया हाय जुनूने-शौक में
आप से होगे भला, दुनिया में दीवाने कहीं

जल चुके आशिक़ हक़ीक़ी, उड़ चुकी है राख भी
आग से क्या शम् की डरते हैं परवाने कहीं

लोग समझे आज 'आतिश' भी मुसलमाँ हो गया
साए में मसजिद के बैठे, हम जो सुस्ताने कहीं

९ जुलाई २००६

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