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अनुभूति में बाबूलाल गौतम की रचनाएँ-

अंजुमन में-
जब तक मेरी बात
जब से उसके हाथ में
नहीं वो लौट कर आया
मेरी गज़लों से बच कर
सैलाब ने जो छोड़ी

 

सैलाब ने जो छोड़ी

सैलाब ने जो छोड़ी तो सूखे ने छीन ली
फिर भी बची फसल तो बिजूखे ने छीन ली

साहू के पास गिरवी थीं धनिया की चूडियाँ
गीता पे हाथ रख दिया झूठे ने छीन लीं

पुरखों से चलती आई दो बीघा ज़मीन भी
उस अरबों खरबों पर बैठे भूखे ने छीन ली

खाते में पडी तेरहवीं के खर्च की रकम
इतला मिली है जाली अँगूठे ने छीन ली

वैतरणी पार करने को एक गैया बची थी
किस्मत का खेल देखिये खूँटे ने छीन ली

४ मई २०१५

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