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नयी रचनाओं में-
अचेतन और चेतन में
इस ज़मीं से आसमाँ तक
कैसे दिन
नयन से जो आँसू
भाप बनकर

छंदमुक्त में-
नदी छह कविताएँ

अंजुमन में-
अपने गम को
कबतक यूँ खफा रहोगे
दरख़्तों पे नज़र
पंछियों के शोर

प्यार करके जताना
मुझे घर से निकलना
शहर का चेहरा
यह जो हँसता गुलाब है
हम छालों को कहाँ गिनते हैं

हवा तो हल्की आने दो

  दरख्तों पे नज़र

दरख़्तों पे नज़र आते कहाँ हैं
ये पंछी लौट के जाते कहाँ हैं

मुनासिब है नहीं घर जा ठहरना
किसी को गैर अब भाते कहाँ हैं

कहीं खोया हुआ है मन हमारा
उसे वे ढ़ूँढ़कर लाते कहाँ हैं

फकत रोटी की जिसको है जरूरत
वफा के गीत वे गाते कहाँ हैं

चले आते हैं खुद ही पार्क में जो
बुजुर्गों को वे टहलाते कहाँ हैं

समझ पाते नहीं जो अपनी पीड़ा
वो अपने, अपने कहलाते कहाँ हैं

२१ जनवरी २०१३

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