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अपने गम को
कबतक यूँ खफा रहोगे
दरख़्तों पे नज़र
पंछियों के शोर

प्यार करके जताना
मुझे घर से निकलना
शहर का चेहरा
यह जो हँसता गुलाब है
हम छालों को कहाँ गिनते हैं

हवा तो हल्की आने दो

  कब तक यूँ खफा रहोगे

कब तक यूँ खफा रहोगे
ऐसे गुमसुम सदा रहोगे

बच्चों के गुमने पर कब तक
सबको देते पता रहोगे

बनना है तो पेड़ बनो तुम
कब तक बनकर लता रहोगे

बिना वजह ही खून बहाकर
कब तक करते खता रहोगे

दर्द नहीं जिसके दिल में हो
कैसे करते वफा रहोगे

५ मई २०१४

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