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अनुभूति में चन्द्र शेखर पान्डेय ‘शेखर’ की रचनाएँ—

अंजुमन में—
आदमी को
एक सिक्का दिया था
कभी मंजर नहीं दिखते
जब प्रिय मिलन में
मुझे इश्क का वो दिया तो दे

 

मुझे इश्क का वो दिया तो दे

सभी दोस्तों को मेरे खुदा, जरा दुश्मनों सा जिगर तो दे,
कभी वार पीठ पे मत करें, उन्हें इल्म में वो असर तो दे।

मुझे दुश्मनों की कतार दे, मुझे मत दे दोस्त हजार तू,
मुझे इश्क का वो दिया तो दे, मुझे तोहमतों का सफर तो दे।

कभी उसने की थी नहीं दुआ, जो हबीब बन के सफर में था,
उसे बददुआ में असर तो दे, उसे दुश्मनों में बसर तो दे।

मुझे खल्वतों में मिले नहीं, मुझे जल्वतों में दिखे नहीं,
मुझे अपनी कोई गुजर तो दे, कभी अपनी कोई खबर तो दे।

सभी कह रहे हैं ग़ज़ल यहाँ, मुझे हो रही है जलन जरा,
मुझे अपनी कोई निगह तो दे, मुझे अपनी कोई बहर तो दे।

१३ अक्तूबर २०१४

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