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अनुभूति में द्विजेन्द्र द्विज की रचनाएँ -

औज़ार बाँट कर
कहाँ पहुँचे
कोई बरसता रहा
ज़रा झाँक कर
दिलों की उलझनों से
बंद कमरों के लिए
मिली है ज़ेह्न-ओ-दिल को बेकली
मोम-परों से उड़ना
सामने काली अंधेरी रात
वो नज़र में

 

कहाँ पहुँचे

कहाँ पहुँचे सुहाने मंज़रों तक
वो जिनका ध्यान था टूटे परों तक

जिन्हें हर हाल में सच बोलना था
पहुँचना था उन्हीं को कटघरों तक

लकीरों को बताकर साँप अकसर
धकेला उसने हमको अजगरों तक

नज़र-अंदाज़ चिंगारी हुई थी
सुलगकर आग फैली है घरों तक

ये कौन आया गुफ़्तगू में
दिलों की बात पहुँची नश्तरों तक

उसे ही नाख़ुदा कहते रहे हम
हमें लाता रहा जो गह्वरों तक

ज़रा तैरो, बचा लो ख़ुद को, देखो
लो पानी आ गया अब तो सरों तक

सलीक़ा था कहाँ उसमें जो बिकता
सुख़न पहुँचा नहीं सौदागरों तक

निशाँ तहज़ीब के मिलते यक़ीनन
कोई आता अगर इन खण्डरों तक

नहीं अब ज़िन्दगी मक़सद जब उसका
तो मज़हब लाएगा ही मक़बरों तक

निचुड़ना था किनारों को हमेशा
नदी को भागना था सागरों तक

बचीं तो कल्पना बनकर उड़ेंगी
अजन्मी बेटियाँ भी अम्बरों तक

अक़ीदत ही नहीं जब तौर 'द्विज' का
पहुँचता वो कहाँ पैग़म्बरों तक

३० जून २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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