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अनुभूति में द्विजेन्द्र द्विज की रचनाएँ -

औज़ार बाँट कर
कहाँ पहुँचे
कोई बरसता रहा
ज़रा झाँक कर
दिलों की उलझनों से
बंद कमरों के लिए
मिली है ज़ेह्न-ओ-दिल को बेकली
मोम-परों से उड़ना
सामने काली अंधेरी रात
वो नज़र में

 

मोम-परों से उड़ना

मोम-परों से उड़ना और
इस दुनिया में रहना और

आँख के आगे फिरना और
पर तस्वीर में ढलना और

घर से सुबह निकलना और
शाम को वापस आना और

कुछ नज़रों में उठना और
अपनी नज़र में गिरना और

क़तरा-क़तरा भरना और
क़तरा-क़तरा ढलना और

और है सपनों में जीना
सपनों का मर जाना और

घर से होना दूर जुदा
लेकिन ख़ुद से बिछड़ना और

जीना और है लम्हों में
हाँ, साँसों का चलना और

रोज़ बसाना घर को अलग
घर का रोज़ उजड़ना और

ग़ज़लें कहना बात अलग
पर शे'रों—सा बनना और

रोज़ ही खाना ज़ख्म जुदा
पर ज़ख़्मों का खुलना और

पेड़ उखड़ना बात अलग
'द्विज'! पेड़ों का कटना और

३० जून २००८

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