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अनुभूति में ज्ञानप्रकाश विवेक की
रचनाएँ -

अंजुमन-
ऐसे कर्फ्यू में
कच्ची मिट्टी से लगन
तमाम घर को
नहीं जहाज़ तो फिर

तेज़ बारिश
बात करता है
मेरी औकात
यहाँ लोगों की आपस में ठनी है
रस्ता इतना अच्छा था
रेत की बेचैन नदी

संकलन में-
धूप के पाँव - तेज़ धूप में

  बात करता है

बात करता है इतने अहंकार की
जैसे बस्ती का हो वो कोई चौधरी!

राजधानी से गुजरा मैं जिस ओर से
शोर-सा मच गया - अजनबी! अजनबी!!

मेरे अश्कों की वो भाप थी दोस्तों,
एक एंटीक की तरह बिकती रही

पूछ मुझसे तू उस रिक्शा वाले का दुख
पूरे दिन में जिसे इक सवारी मिली

उसकी आँखों में खुशियों के त्योहार थे
उसके हाथों में थी एक गुड़ की डली

मैंने गज्जक ज़रा-सी दिखाई उसे
गाँव के बच्चे ने चॉकलेट फेंक दी

मेरे महबूब ने मुझसे शिकवा किया
प्यार की चिठ्ठी क्यों इतनी लंबी लिखी

मौत के सायबां से गुज़रते हुए -
वो पुकारा बहुत - ज़िंदगी! ज़िंदगी!

१६ अप्रैल २००३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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