अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में हसन सिवानी  की रचनाएँ-

आजकल
इन दिनों
मैं तुझे चाहूँगा
यादों का साया
शम्मे वफ़ा जलाएगा
 

 

आजकल

क्यों परेशाँ आदमी है आजकल।
शामे ग़म की ज़िंदगी है आजकल।

खून के प्यासे हैं सारे लोग ही,
जिससे देखो दुश्मनी है आजकल।

बदनसीबी के शिकार होते गए,
जिसके घर में मुफलिसी है आजकल।

सर्द मौसम में भी कपड़े हैं नहीं,
क्या करूँ के भुखमरी है आजकल।

पूछती है ये बहारां जिंदगी,
क्यों ख़िज़ाँ में दिलकशी है आजकल।

आप मुझ पर ही सितम करते है क्यों,
मुझसे ही क्यों दुश्मनी है आजकल।

हम ग़रीबों का मकाँ कैसे बने,
हममें ही सारी कमी है आजकल।

लब पे ज़रदारों के ही प्यारे हसन,
बस गुलों की ताज़गी है आजकल।

२ फरवरी २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter