अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में जयप्रकाश मिश्र की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
अगर चीनी नहीं
कहता है तू महबूब
कई साँचों से
चिकनी मिट्टी

अंजुमन में-
आँधियों के देश में
कोई जड़ी मिली नहीं
कोई सुग्गा न कबूतर
गरमजोशी है लहजे में
मेरा यूँ जाना हुआ था
वफा याद आई

सजाना मत हमें
हवा खुशबू की

  कई साँचों से

कई साँचों से ख्वाबगाह सजाना चाहा
ईंट-मजदूर ने क्या-क्या नहीं पाना चाहा

दिल के हर दर्द को आँखों बयान कर डाला
उसने होठों को तो पुरजोर दबाना चाहा

तब आयी याद वो दुबकी हुई बिल्ली मुझको
जब भी आँगन में परिन्दों को चुगाना चाहा।

वो इक विशाल से जलचर की पीठ थी शायद
हमने टापू समझ के उसपे ठिकाना चाहा।

निकल आये हमीं आवारगी की बस्ती से
वरना हर याद ने फिर लौट के आना चाहा।

फिर मूझे तितलियों ने दौड़ सिखानी चाही
हरी फस्लों ने फिर आँचल में छिपाना चाहा।

१५ नवंबर २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter