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अनुभूति में जितेन्द्र जौहर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
इतनी ऊँची उड़ान
खुशामद का मेरे होंठों पे
ठहरा हुआ जलाशय-सा
दौर-ए-हाज़िर

 

ख़ुशामद का मेरे होठों पे

ख़ुशामद का मेरे होठों पे, अफ़साना नहीं आया।
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आया।

हुनर अपना कभी मैंने, कहीं गिरवी नहीं रक्खा,
इसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।

भले ही मुफ़लिसी के दौर में फ़ाक़े किये मैंने,
मगर मुझको कभी भी हाथ फैलाना नहीं आया।

किसी अवरोध के आगे, कभी घुटने नहीं टेके,
मैं दरिया हूँ मुझे राहों में रुक जाना नहीं आया।

सियासत की घटाएँ तो बरसती हैं समुन्दर में,
उन्हें प्यासी ज़मीं पे प्यार बरसाना नहीं आया।

परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।

अनेकों राहतें बरसीं, हज़ारों बार धरती पर,
ग़रीबी की हथेली पर कोई दाना नहीं आया।

सरे-बाज़ार उसकी आबरू लु्टती रही ‘जौहर’
मदद के वास्ते लेकिन कभी थाना नहीं आया।

१३ दिसंबर २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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