अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में ममता किरण की रचनाएँ

नई रचनाएँ--
दायरे से
बाग जैसे गूँजता है पंछियों से

अंजुमन में—
आज मंज़र थे
कोई आँसू बहाता है
खुदकुशी करना
रात जाएगी सुबह आएगी
हवा डोली है
होली आई है

 

आज मंज़र थे

आज मंज़र थे कुछ पुराने से
याद वो आ गए बहाने से।

जो खुदा से मिला कुबूल रहा
कोई शिकवा नहीं ज़माने से।

बारिशों की सुहानी रातों में
गीत गाए वो कुछ पुराने से।

इतनी गहरी है जेहन में यादें
मिट न पाएगी वो मिटाने से।

बीत पतझर का अब गया मौसम
अब निकल आओ उस वीराने से।

मैं नहीं ख़्वाब हूँ हक़ीक़त हूँ
ये बता दो मेरे दीवाने से।

चाहे जितना वो रूठ ले मुझसे
मान ही जाएँगे मनाने से।

घर में आएगा जब नया बच्चा,
घर हँसेगा इसी बहाने से।

रंग तुझपे चढ़ ही आया है
फ़ायदा क्या हिना रचाने से।

16 अप्रैल 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter