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अनुभूति में ममता किरण की रचनाएँ

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दायरे से
बाग जैसे गूँजता है पंछियों से

अंजुमन में—
आज मंज़र थे
कोई आँसू बहाता है
खुदकुशी करना
रात जाएगी सुबह आएगी
हवा डोली है
होली आई है

 

रात जाएगी सुबह आएगी

रात जाएगी सुबह आएगी नई फिर से
दुख से मत डरना कि आएगी हर खुशी फिर से।

बहक गए हैं कि जो लोग अपने रस्तों से
बना दे काश कोई उनको आदमी फिर से।

एक अरसे से जो रूठी थी ये किस्मत मुझसे
आज लौटा के गई वो मेरी हँसी फिर से।

पत्तियाँ झर गई पेड़ों पे उदासी छाई
कोई बतलाए ये कैसे हवा चली फिर से।

सच कहा है ये किसी ने कि गोल है दुनिया
ये न सोचा था कि मिल जाएँगे कभी फिर से।

याद आए वो बहुत आज याद आए वो
आज महफ़िल में खली उनकी ही कमी फिर से।

सूनी दीवारों पे टँगते गए जो चित्र कई
ले के आए मेरी आँखों में इक नमी फिर से।

16 अप्रैल 2007

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