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अनुभूति में मंजुल मंजर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
किसी बशर से
कैसे अंदाज़ लगे
दिल से तस्वीर
फिर से अच्छे हुए हालात
वो नफरतों से

 

कैसे अंदाज लगे

कैसे अंदाज़ लगे ज़ख़्म की गहराई का।
वक़्त मिलता ही नहीं दर्द की सुनवाई का।

मुझको मालूम है तू मिल न सकेगा मुझको
तुझको खा जाएगा ये डर तेरी रुसवाई का।

चैन तुझको भी न हो पाएगा हासिल यों ही
कट न पाएगा कभी वक्त ये तनहाई का।

जब कभी भी मैं जलाता हूँ अँधेरों में चराग़
मुझको होता है भरम तेरी ही परछाई का।

बन के उठती हैं लकीरें जो धुएँ की अक्सर
मुझको नक़्शा सा लगे है तेरी अँगड़ाई का।


१ जून २०१९

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