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अनुभूति में मंजुल मंजर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
किसी बशर से
कैसे अंदाज़ लगे
दिल से तस्वीर
फिर से अच्छे हुए हालात
वो नफरतों से

 

वो नफरतों से

वो नफ़रतों से मार खा के प्यार ढूँढता रहा।
गुलों से ज़ख़्म खाए थे सो ख़ार ढूँढता रहा।

कुछ ऐसे भी थे जो दया व धर्म ढूँढते रहे।
जो भेड़िया था वो फ़क़त शिकार ढूँढता रहा।

लगी हुई थी भीड़ लोग बिक रहे थे बारहा
तलाश में था मैं भी एक यार ढूँढता रहा।

अना से मेरी लोग दूर दूर भागते रहे
ग़ुरूर मारने को मैं कटार ढूँढता रहा।

समंदरों के पास भी कहाँ था ऐसा आब जो
मिटा दे प्यास वो ही जल की धार ढूँढता रहा।

यकीं दिलाता ही रहा फ़रेब दे के वो मुझे
जो खो गया था मैं वो ऐतबार ढूँढता रहा।  

१ जून २०१९

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